Thursday, February 19, 2015

You became something and you suffered...


It happened to me to read the great sufi poet Bulleh_Shah is a great humanist, and a saint, though when he was alive, hardly followed him or regarded, the person when reach to higher realm of consciousness, he become non dual, and he sees the world as one, beyond, the geographies of the world, beyond every thing, in him is Allah and allah is him, they become one and the same.
A beautiful life incident which teach a great lesson is here as under-
(source : poetry bullahn)
 

Saturated with the love of God, Bullah became the personification of compassion and forgiveness. He began to see the divine in every being, and distinctions of caste and religion, friend and foe, ceased to have any meaning for him. The following incident of his life illustrates this sublime state of his mind in a beautiful way:

It is said I that "once Bulleh Shah was engaged in meditation inside his chamber. It was the month of Ramzan. Some of his disciples were sitting outside eating carrots. After some time a group of orthodox Muslims who were keeping the fast happened to pass them. When they saw the disciples sitting at a faqir's abode and violating the fast, they were enraged. " They shouted in an angry voice, " Are you not ashamed of eating in the month of Ramzan, and that also at the abode of a faqir?" The disciples replied, "Brother believers, take your path. We are feeling hungry. That is why we are eating. "

The group of believers felt suspicious about their faith. So they asked, "Who are you?" They replied, "We are Muslims. Don't the Muslims feel hungry?". The believers again commanded them to stop eating, but the disciples did not heed. The believers who were on horses, alighted. They snatched the carrots from the hands of the disciples, and threw them away. They also gave a few blows to them. As they were about to leave, it struck them that the pir of these impious people must have been cast in the same mould. So they turned back to ask him what kind of instruction he had given to his disciples. They went to his chamber and said, "Who are you?" Bullah who was meditating with his eyes closed, raised his arms and moved his hands. They asked him again, "Why don't you speak? Who are you?" Bullah once again raised his arms. The riders taking him to be a mad man, went away. Soon after they left, the disciples entered the chamber, raising a hue and cry that they had been beaten. Bullah told them that they must have done something to provoke the believers. The disciples denied to have done any such thing. Bullah said, "What did they ask you?" The disciples replied, "They asked us who we were, and we said we were Muslims." Bullah retorted, "That's why you were beaten. You became something and you suffered. I didn't become anything, and they said nothing to me."
To consider oneself something emanates from the sense of ego. Such a person is still under the sway of maya, and has not had a vision of Truth so far. One who has had such a vision comes to know his true Self and gets liberated from the bondage of caste, religion and country. There are numerous instances in the poems of Bulleh Shah, which show that the soul, like the Lord, has no religion, no caste, no country. All these distinctions are born out of time and space, but the soul is unborn and timeless. It has neither a beginning, nor an end, nor is it bound by the limitations of caste and religion. Bullah recognizes only the primeval relationship of soul with God :


Remove duality and do away with all disputes;
The Hindus and Muslims are not other than He.
Deem everyone virtuous, there are no thieves.
For, within every body He himself resides.
How the Trickster has put on a mask!


.......... Bulleh shah


Friday, February 13, 2015

A Yogi's own house is "AWARENESS"

शांत चित्त ही शक्ति उत्पन्न करता है। 
सांसारिक विषयों के सामने आने पर , (अर्थात परेशानी आने पर ) आँख रहते हुए  अँधा , कान रहते हुए बहरा , जीब रहते हुए गूंगा ,बलवान रहते हुए दुर्बल बन जाना चाहिए , यानि कोई सोया हुआ या मारा हुआ हो इसतरह।  पर ठीक इसका उल्टा उपदेश सुनते समय कभी भी मानसिक तत्परता को नहीं छोड़ न चाहिए , एक योगी का अपना घर मानसिक तत्परता ही है। .............................................गुरूजी 


Tranquil and calm mind Cultivates strength with in us.

When we are trapped in worldly affairs, than
1) Get blindfold even if we have eyes.
2) Get deaf even though you have ears.
3) Even though we know how to talk become dumb.
4) Even though we are powerful show no power.
5) Just simply become powerless as if we are dead or sleeping.
 But when we are listening to sermon never ever leave  your Awareness. means we should keep ourselves Awakened makes us AWAKE. Awake to REAL SELF.

To practice-
conclusion is - switch off the conscious mind to all disturbing thoughts and emotions which raise in the mind, as well as the taunts coming from outside. but just keep fully awaken to the introspection, and while listening to the learned people with wisdom.

 A Yogi's own house is  "AWARENESS"...................................Mentor

हिल मिल रह ना , दे कर खाना ,नेकि बात सिखावत रहना .






सद्गुरु कबीर दास जी की तीन आसान कार्य जीवन को एक पवित्र दिशा देते है 
Sadguru kabir's  three action habits give life a pious direction.



 करना क्या है 

 What to do?
 or Action

 परिणाम क्या होगा 

 Result of Actions


किस पे काम करता है 

Where it works
 हिल मिल रह ना 

 Live harmoniously
 जीवन में मधुर संबंध 

 Sweet relationships


 मन 

Mind
 दे कर खाना 
Share food
 पाप काट आसानी से काट जायेंगे ,काम बीमार पड़ेंगे। 
 We are not often diseased, get purity of body.
 शरीर 

Body
 नेकि बात सिखावत रहना .


Share Goodness



 दिव्यता लौट के आएगी अर्थात शुद्धिकरण ह्रदय का पूर्ण होगा ,
Goodness will return, and we gradually become pure .
 आत्मा 

Soul



Sunday, February 8, 2015

चार सुख

चार सुख




पहला सुख : निरोगी हो काया 
 काया वो सीढ़ी है जिस पर चढ़ कर मोक्ष के आसमान तक जाया जाता है ,  सीढ़ी ही ख़राब हो तो स्वर्ग के  साक्षात्कार   के सपने देखना भी  बेईमानी होगी , बीमार ,लाचार , दुखी , हाय दैया करने वाले आत्माए  कभी भी साधना नहीं कर सकती  , स्वस्त ,शरीर को साधने वाला , ऊर्जा को संजोएके  रखने वाला , अपने इन्द्रियोंको सयंमित करने वाला , जीवन की हितकारी और अहितकारी नियमो का पालन करने वाला ही  निरोगी रह सकता है , जो करना है जवानी में करलें, बुढ़ापा में  कोई उल्लू सीधा नहीं होता , संस्कारो में पड़ी हुई जगण्या आदते को मोड़ कर सीधे रस्ते में लाना एक बूढ़े शरीर की बस की बात नहीं है। हमारे यहां चार आश्रम बतये गए है ऐसा दलील कई लोग देते है की ये सब बुढ़ापे की बातें है अभी तो जवानी है आओ आँखे चार करले। 
 ब्रह्मचर्य ,गृहस्त ,वानप्रस्त और सन्यास , अरे भाई कभी ब्रह्मचर्य का पालन ठीक ठीक तरीके से गुरु से सीखकर ,गुरु की आज्ञा लेकर ,ग्रहस्त में प्रवेश किया हो तो न  सन्यास लपाओगे आखरी में , जवानीतो पुरे दुर्गुणों की खान बनाएंगे और बुढ़ापे में स्वर्ग की आस लगाएंगे तो दुर्गति निश्चित है ,बेटे बहु पर  खीज ने से कुछ नहीं होगा , खुद कभी साधना किया नहीं, जबान पर कंट्रोल नहीं और ज्ञान देते फिरने से क्या फायदा , 
जो करना है जवानी में करलो। काया को जिन्होंने  निरोगी रखा अपना रास्ता भी सुगम बना लिया। स्वस्थ शरीर   यह  दुर्लभ  है
काया वह सीढ़ी है जिससे स्वर्ग का रास्ता तय होता है। …बुद्धा

दूसरा सुख : घर में हो  माया 
 कबीर कहते है  माया को झूठा कहे झूठे उनके ज्ञान ,माया से सब होत है यज्ञ ,तप और दान, और आगे भी  कहते है , साधु इतना दीजिये जमे कुटुंब समाय मै भी भूखा न रहूँ और साधु भी भूखा न जाए। धन सम्पति के बिना यज्ञ , तप  और दान भी नहीं हो सकता इसलिए , अपना काम छोड़ कर अन्यत्र विचरण करना (जैसे कई लोग अपनी हॉबी को ही जिंदगी समजने का भ्रम पलते  है ।)  इतना तो कमालो की घरबार  ठीक से चललो और जो अंगन्तुक  है उसको को भी बिना परेशानी के खिला सको , यह भी जवानी में करने की बात है।बाद में कुछ नहीं होगा। घर में माया का टिकना भी दुर्लभ है 

तीजा सुख : गुणवंती नारी       
 अच्छे गुणों से लबालब भरी औरत घर को ही स्वर्ग बना देती है ,  रूप और  रंग  देखने वालो को यह बात कहाँ भाएगी। ग्रहणी माकन को घर बनती है तो घर को बर्बाद भी कर सकती है , ज्यादातर लोग जो शिकायत अपनी पत्नी की करते है वह कभी भी उस नारी की सपोर्ट सिस्टम को नहीं देख पाये होंगे , उसका सहिष्णुता नहीं देख पाये होंगे , उसकी टॉलरेंस पावर नहीं देख पाये होंगे , उसका विवेक नहीं देख पाये होंगे.
पूरी घर की सपोर्ट होती है , और जिस सप्पोर्ट पर निभर्र पूरा परिवार होता है वह अच्छी गुणोंवाली नहीं हो खाली रंग और रूप में सुन्दर हो तो घर एक कब्रिस्तान बनना निश्चित है जहाँ इंसान नहीं बस्ते और न कोई आता जाता है। और इस गुणकारी नारी की सर्वत्र पूजा की जानी  चाहिए , क्यों की उसने सरे घर को अपने ऊपर संभल कर रखा। नारी का दर्जा नर के बराबर का है , एक दम बराबर का  , बस स्व धर्म अलग अलग है। जो लोग चिकनी मिटटी को देख कर फिसल गए उन्होंने घर को कूड़े दान बना लिया. जिनकी  आरती ,अर्चना दिन रात करते हो  ऐसे युग प्रवर्तक का जनम भी एक नारी से ही हुआ। गुणवंती नारी को सलाम। गुणवंती नारी भी दुर्लभ है।

चौथा सुख : पुत्र अधिकारी     
 आज्ञा करी पुत्र तो कहीं कहीं मिल भी जाते  है,पर  अधिकारी पुत्र दुर्लभ है.पिता का पुत्र बनना आसान बात नहीं है , ज्यादातर लोग आज्ञाकारी पुत्र कहते है , पर आज्ञा का यथावत पालन गुलामयत की निशानी , एक पिता अपने बच्चे में  उत्तराधिकारी ढूंढता है , न की गुलाम, अपने पिता के स्वप्नों को सच कर दिखाने वाला ही सच्चा अधिकारी पुत्र है। God doesn't want great men, he want those who can prove his greatness to the world.. परमेश्वर महान पुत्र नहीं चाहता , वह उस पुत्र को चाहता है जो संसार को बता सके की मेरा पिता महान था। ऐसा पूत बनजाये  जाये तोह वारे न्यारे हो जायेंगे। अधिकारी पुत्र तो अति दुर्लभ है।
  कबीर कहते है 
पाँच पहर धंधे गया, तीन पहर गया सोय ।
एक पहर हरि नाम बिन, मुक्ति कैसे होय ॥

Saturday, February 7, 2015

ब्रह्माण्ड के संकेत , सचेत करने के लिए। .!!!




ब्रह्माण्ड के संकेत , सचेत करने के लिए। .!!!

ज्यादातर लोग यही मानते है की घटना युही होगई ,पर अगर अपने अंतर मन से संपर्क हो जाये तो पता चलेगा की जो कुछ भी होता है वो सब हमारी ही रचना  है। हाँ हमें इसकी जान करी न हो यह सम्भव है ,हम हर क्षण क्या रचते है इसकी जानकारी भले ही हमें न हो पर खुशकिस्मती से प्रकृति (ब्रह्माण्ड) हमें सचेत करता है; कई संकेत देकर, कि  हमारा पथ ठीक है और भी महत्वपूर्ण है की हम कब गलत पथ पर है।

साधारणतः ब्रह्माण्ड से चेतावनी किसी अनचाही परिस्थिति या संघटनाओ के माध्यम से आते है , यह संकेत इंगित करते है हमरी ऊर्जा का प्रवाह निम्न या शून्य कम्पन (low vibration frequency) फस गयी या अत्यंत धीमी गति से प्रवाह हो रही है ,आप अनुभव कर सकते है  की आपके धरा प्रवाह विचार  ,आपके अनुभव आपके कृत्य सब कुछ नेगेटिव हो गए हैं और परिणाम स्वरुप अनचाहे परिस्थितियों कर निर्माण करते जा रहे है।

ठीक इसका उल्टा जब जीवन में आप के विचार , अनुभव , कृत्या जब ऊंचे कम्पन पर होते है तो हर कार्य परफेक्ट हो रहा होता है , आपका समय , आप का  भाग्य अच्छा चल रहा होता है , हर कार्य ठीक ठीक अपने समय से हो रहे होते है ,सौभाग्य आपके कदम चूम रहा होता है ,आपका सुबह से रात्रि तक अच्छा वक़्त निकल ता है , इसिलए अपने वाइब्रेशन का चुनाव जानबूझकर पॉजिटिव और बढ़के रखना महत्वपूर्ण है

हमारे पास क्षमता होने के बावजूद इसे हमेशा पोसिटिव और बड़ाके रखना बहुत मुश्किल होता है , इसका कारण जानकार बताते है की हमारी अंतरात्मा इस धरती (स्थूल काया  ) और आकाश (सूक्ष्म काया ) के फस जाना है ,ऊंचे कम्पन में सूक्ष्मता का परवाह है , और निम्न कम्पन में स्थूल काया का। सूक्ष्म हमारी अंतर आत्मा है और स्थूल काया जगत।

इसके परिणाम स्वरुप हम अनचाहे परिणामों में फस जाते है , बार बार , पर यह ठीक है जबतक सूचनाओ  के माधयम से हमें संकेत चिन्ह  प्राप्त होते है और उन संकेतो को शुभ मानकर जल्दी से हमारे फूला हुआ अहंकार को  ठीक ठीक जगह स्तिथ करलें। और सही राह फिर से आजाएं।

यहां कुछ संकेतो का जो  मेरे अनुभव में आये उनका उल्लेख करता हूँ ,जो की ब्रह्माण्ड का संकेत मानकर स्वीकार किया और आगे बढ़ गया , आप अपने संकेत ढूंढे।

१) अपना पैर किसी मेज़ या कुर्सी से अचानक टकरा जाना
२) लोगों की नजर आप पर  बुरी तरह से पड़ना,या  गन्दी बातें कहना।
३) अपने आपको किसी अनचाही जगह जैसे  लिफ्ट या ट्रैफिक में बुरी तरह से फस जाना (रस्ते और थे पर हमने ही उसदिन वह रास्ता चुना जिस में फस गए )
४) चोट लगना या हाथ छिल जाना या काटना
५) अचानक से आपके खर्चे कई गुनाह बढ़ जाना।
६) अचानक से सब कुछ बुरा लगना
७) अपने लोगों से  बिन बातके चिल्ला - चोट करना
८) बार -बार बीमार पड़ना,  कारण नासमझ पाना
९) बिन बात के सर दुखना ,और वो भी बार बार
१०) अपनी कमाई या कीमती वास्तु अचानक से  खो जाना।

हर एक संकेत यह इंगित करता है की आप आपने  को फूले हुए अहंकार को वापस ठीक जगह लाकर  रख दे , और ऊर्जा कम्पन vibration से तालमेल मिलाये। जब कभी भी इस तरह की घटनांए आप के साथ हो तो तुरंत रुख जाये , सारा अन्य कार्य छोड़ दे , जिसे  करते हुए वह घटना घाटी वहां से अपने आपको अलग करले, उसमे आगे भी आसक्ति नहीं दिखाए ,  पीछे हट जाएँ।

समाधान  : अब आप को क्या करना है मै ;मेरे अनुभव  पर कह ता हूँ.

१) सबसे पहले गहरी सॉस ले , अपनी सांस पर धयान केंद्रित करें , अपने को सजग बनालें।
२) अगर आप पर गहरा आघात हुआ है तो वही पर कही बैठ जाएँ और २ मिनट का धयान करें.
३) परमेश्वर को धन्यवाद दे की उसने संभाल लिया। 

४) अगर आप संकेत जल्दी से समझ लेंगे तो अपने आपको सकेंद्रित मन (मन विकेन्द्रित हो गया था ) कर सकते है।

५) अपने आप को नेगेटिव विचार धरा के प्रवाह से बचाए , भय और अपशगुन जैसी धारणा से बचे।



आखरी बात यह धयान दे  की जितने भी संकेत यहाँ बताया गया है , उनके ऊपर ज्यादा नहीं सोचे , सोच सोच कर अपनी ऊर्जा को निम्न फ्रीक्वेंसी पर ले जायेंगे , इसलिए सरलता से अपने आप को अपनी ब्रह्माण्ड  की फ्रीक्वेंसी से मिला ले जो की शांत मन जो तो अपने आप सुनाई देता है (sound of silence), आपके कार्य  अपने आप सादगी से चलते जायेंगे।