Acceptance - एक आरम्भ
सन २०१४ में पहली बार मैंने पढ़ा की महान ईश्वर दूत प्रभु इसु के भी गुरु थे ," जॉन द बैप्टिस्ट ", उन्होंने प्रभु इसु को नाम दान दिया (Initiation) और इसु तीन दिनों तक उपवास किया और एक गुफा में उनको स्वर्ग में प्रवेश मिलगया अर्थात ज्ञान हो गया। और वापस आकर लोगों को सबसे पहले उद्बोधन में पहला वाक्य क्या था " रिपेन्ट "
From that time Jesus began to preach, and to say, Repent: for the kingdom of heaven is at hand. .... Matthew 4:17
प्रायश्चित करने के लिए क्यों कहा, इस मानवमात्र के लिए अवतरित ईश्वर पुत्र सम्पूर्ण मानव जाती से कहता है प्रयाचित करो , किन गुनाहो के लिए प्रयाचित कहरहे हैं ? हमारे द्वारा पिछले कई जन्मो से हुए पाप , वह पाप जो ईश्वर की नजर में पाप है न की मानव शासन के नज़रमे, उन पापो के लिए जो ईश्वर साम्राज्य के प्रवेश के लिए अवरुद्ध करती है , उन गुनाहो के लिए प्रायश्चित करें।
क्या है प्रायश्चित करना ? अर्थात ऐसा मनो भाव जिसमे मैं अपने त्रुटियों को पूर्ण चैतन्यता के साथ याद रखूँ , ऐसा मनो भाव जिसमे याद रखूं की यह कार्य मेरे आत्म अनुकूलन है या नहीं , ऐसा मनो भाव जिसमे याद रखूँ की मैं कोई आउनुचित कार्य जाने- अनजाने तो नहीं हो रहे है , उस मनो स्थीती का नाम है " प्रायश्चित करना"। वह पाप जिनके कारण जो प्रारब्ध में थे उदय हो कर मेरा जनम हुआ' और वो पाप जो संस्कार में पड़े हुए है उनसब का प्रायश्चित करना। रेपेन्ट का मतलब कई लोग पश्चाताप से लेते है , पश्चाताप एक ऋणात्मक(Negative word) शब्द है ,जिसको गिल्ट कहते है , हमें प्रयाचित के लिए कहा गया है न की पश्चाताप।जब प्रायश्चित करते है तो उसके साथ एक गुण का उदय होता है - ACCEPTANCE (स्वयं कि जिम्मेदारी लेना )
अगर हम अपनी पिछली गलतियों को नहीं दोहरायें और अपना आज सुधारलें , तो आनेवाला कल अच्छा होना सुनिश्चित है।
चलो संकल्प ले की हम प्रायश्चित करेंगे और सदा सचेत रहेंगे की हम अपनी पछली गलतियों को नहीं दोहराएंगे , और पूरी ऊर्जा के साथ आज ( Today ) सुधारेंगे , प्रण करें कि पुरुषार्थ करने का भरसक प्रयास कर उस असीम ईश्वर के कृपा पात्र बनेंगे.
हमारे शास्त्रों में भी इसका उल्लेख है और उसका मंत्र निम्न है
ईश दूत का महान सन्देश अपने जीवन में अनुकरण कर अपने जीवन का कल्याण कर, आज के दिन उनके सन्देश को सच्चे मन से स्वीकार कर उनको धन्यवाद दें।
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