मेरी मित्र को पत्र .............
I know you are feeling restless, like life is not on your side
Its weighting heavy on your mind...
क्यूं कहते हो मेरे साथ कुछ भी बेहतर नही होता
सच ये है के जैसा चाहो वैसा नही होता
कोई सह लेता है कोई कह लेता है क्यूँकी ग़म कभी ज़िंदगी से बढ़ कर नही होता,
आज अपनो ने ही सीखा दिया हमे
यहाँ ठोकर देने वाला ग़ैर पत्थर नही होता
क्यूं ज़िंदगी की मुश्क़िलो से हारे बैठे हो
इसके बिना कोई मंज़िल, कोई सफ़र नही होता
कोई तेरे साथ नही है तो भी ग़म ना कर
ख़ुद से बढ़ कर कोई दुनिया में हमसफ़र नही होता....(अग्यात )
एक लड़ाकू बनों ..!!! सरी मुश्किलों के बावजूद ...एक कदम और बढ़ो अपनी मंजिल की और !!! तुम कर सकती हो , बस पहले अपना मकसद तो बनाओ अपना .
मiने हो मंजिल तो रास्ता न छोड़ना,
जो मन में हो वो ख्वाब न तोड़ना,
हर कदम पे मिलेगी कामयाबी तुम्हे,
बस सितारों को छूने के लिए,
कभी ज़मी न छोड़ना.....(अज्ञात )
मiने हो मंजिल तो रास्ता न छोड़ना,
जो मन में हो वो ख्वाब न तोड़ना,
हर कदम पे मिलेगी कामयाबी तुम्हे,
बस सितारों को छूने के लिए,
कभी ज़मी न छोड़ना.....(अज्ञात )
एक कदम और बढाओ अपनों को पहचानने में , अपने अन्दर निवेश करना है येही मंजिल है और मक्संद भी.
अपने मकान को दूसरो के मोहल्लेमे क्यों ढूढ़ थे हो , जा रा अपना सर झुखाके तो देख वही पायेगा सब कुछ।
अपनी सार्री नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक बदल दो ,अपने सौच की वातावरण को बदल डालो पहले एक सकारात्मक सौच की और .हाँ मैं जनता हूँ की तुम कहोगी की मुझे पहले से पता है।
एक बार और ही सही , एक बार और प्रयत्न करो अपने को ऊर्जावान बनाने के लिए और अपने को प्रसन्नचित बनाने के लिए।अपनी पुरानी सौच को पूरी तरहसे बदल डालो ,
पर सच्ची कुशी तभी आएगी जब तुम्हारे अन्दर दया का गुण आएगा सब प्राणियों के प्रति , सब के साथ सामान व्यवहार करना पड़ेगा . सारी दुनिया को अपनी ही जगह स्तिथ रहने दो बस तुम एक और कदम अपनी मजिल की और बदो , अपने पथ पर !!!!
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
-हरिवंशराय बच्चन
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
-हरिवंशराय बच्चन
दिल न देना न दिल लेना, न वहमें दिल सिताँ रखना ।।
अगर है तर्क कर दो, तर्क का भी तर्क बेशुब्ह
मकां जब छुट गया फिर क्यों खयाले लामकां रखना
जब तक तुम्हारा शरीर है तुम साधन करके शब्द और प्रकाश में रह सकते हो. मगर जब तक शरीर है , 24 घंटे वहाँ नहीं रह सकते. मैं भी नहीं रहता. कोई भी नहीं रहा.
इसलए डरो नहीं , हाँ कभी कभी डूब जाते है चिन्ताओ में पर हम उठाना भी जान ते है,ये ही क्रम जारी रखो जब तक हुम जीत हासिल नहीं कर लेते है .
आगे बढ़ो , अपना एक कदम मजिल की और .!!!
कबीर दस जी कहते है
सखिया वा घर सबसे न्यारा, जहं पूरन पुरुष हमारा ।। टेक ।।
जहं नहिं सुख दुख सांच झूठ नहिं, पाप न पुन्न पसारा ।
नहिं दिन रैन चन्द नहिं सूरज, बिना जोति उजियारा ।। 1 ।।
नहिं तहं ज्ञान ध्यान नहिं जप तप, वेद कितेब न बानी ।।
करनी धरनी रहनी गहनी, ये सब उहां हिरानी ।। 2 ।।
धर नहिं अधर न बाहर भीतर, पिंड ब्रह्मंड कछु नाहीं ।
पांच तत्त्व गुन तीन नहीं तहं, साखी सब्द न ताहीं ।।3 ।।
मूल न फूल बेलि नहिं बीजा, बिना वृक्ष फल सोहै ।
ओअं सोहं अर्ध उर्ध नहिं, स्वासा लेख न कोहै।।4 ।।
नहिं निर्गुन नहिं सर्गुन भाई, नहिं सूक्षम अस्थूलं ।
नहिं अक्षर नहिं अवगत भाई, ये सब जग के भूलं ।। 5 ।।
जहाँ पुरुष तहवां कुछ नाहीं, कहै कबीर हम जाना ।
हमरी सैन लखै जो कोई, पावै पद निरवाना ।।6 ।।
मे नहीं कहता की तुम्हारा दुःख दुःख नहीं है , तुम्हारी परेशानी को नज़र अंदाज़ नहीं करता, पर अभी यह कहता हूं , की इन सब से ऊपर उठो ,येही सब दुनिया नहीं है, शायद यह तुम को लगता होगा की सब कुछ छो ढ़ ना पढ़ेगा , तो क्या करलेंगे पकडे रख कर , तोह क्या यह पकड़े रखने की लड़ायी है?
हाँ शायद अपने नहीं सम्झेंगे सम्झंगे तब तक तो येही दुनिया है,
अपने अनदेखे पहलुओ को उजागर करो जो बहूत सारी है।
जो कोई अच्छाई में रहता है और नित नए संरचना करता है, क्या यह एक अद्भुत कार्य नहीं?
अपने और अपने अच्छे गुणों पर ध्यान केन्द्रित करो , क्यों की तुम एक अच्छे घर के हो , कोई भी तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकता .
बस गुरु (इश्वर )और अपने विश्वास पे विश्वास मत छोड़ना
विजायी भव :
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