Sunday, March 1, 2015

ठाकुर तुम सरणाई आईआ



नमस्ते परब्रह्मा नमस्ते परमात्मने ,
निर्गुणाय नमस्तुभ्यं सद्रूपाया नमो नमः

 मानव  शरीर प्राप्त  करना एक दुर्लभ घटना है,  और जब परमात्मा हाड़ मॉस रक्त से बने शरीर में अवतरित होता है तो और भी दुर्लभ कह सकते है, और परमेश्वर इस  हाड़ मास रक्त से  बने शरीर में रहकर सत्संग करते है , तो वो स्थान अपने आप में   इतना पवित्र  और  निर्मल होजाता है की प्राणी अपना कल्याण कर सके और जो भी   प्राणी इसके दायरे  आते है वो भी  वैसे ही होजाते है। 

अब अगर जीव को ऐसा स्थान की  प्राप्त  हो जाये तो इसे संयोग नहीं  सकते   , यह  परमात्मा का अनुग्रह है, This is calling of SADGURU, यह सतगुरु का चुनाव है  की आप अपना कल्याण करलो। 
यह दिन उन्होंने चुना अवतरित होने का ताकि  हमारा कलयाण करसके , ऐसे सतगुरु का सानिध्य मुझे भी प्राप्त हुआ।  और जिस  शब्द की गूँज के रूप में   मुझ में वो  समागाये , उस गूँज  के साये के पथ पर निरंतर  चलता रहूँ बस ऐसा आशीष चाहता हूँ. १ मार्च का  संदेश भी एहि कहता है ;  निरंतर चलते रहो. 

पथ पर चलने वाले के लये सबसे बड़ी चुनौती होता है उसका स्वयं का  मन  , उसे कहाँ तक खीँच खीँच कर लेकर जाये कोई नहीं कहसकता। 
 एक सबह में एक कवि अपनी कविता इस प्रकार कहता है 
चीटी चढ़ी  पहाड़ पर , चीटी ....... चढ़ी पहाड़ पर , चीटी __________________चढ़ी पहाड़ पर , अब कई लोगों को सहन नहीं हुआ  , पूछने लगे बता भी दो आगे क्या हुआ तो महानुभाव ने बताया की साहब चीटी उतर  गयी।  बस हमारे भी यही हाल है। ऊपर की और चढ़ते है और उतर  जाते है। मन- दानव बड़ा मायावी है , इसको साधना कठिनतम है , गुरु की बताई हुई एक एक बात को ठीक ठीक जान कर ठीक ठीक अमल  नहीं करते , जब तक मन निर्मल नहीं करते, यह दानव अपना रूप बदल बदल कर जीव की दुर्गति करता रहेगा।

 सद्गुरु से बड़कर कोई तारणहार  होही नहीं  सकता , नाव भी वाही है और खेवैया  भी वाही है , बस हमें तो यह करना की उनको  सौंप देना होगा । यह कहते हुए। 


ठाकुर तुम सरणाई आईआ 
उतर गइओ मेरे मन का संसा जत ते दरसन पाइआ। .......टेक 
अनबोलत मेरी विरथा जानी  अपना नाम जपाईयां। 
दुःख नाठे सुःख  सहज समाये , अनद अनंद गुण गईआ। 
बाह पकर कढ लीने अपने ग्रिह अंध कूप ते माईया 
कहो नानक गुरु बंधन काटे बिछुरत आन मिलाइआ 
तुम सारण आईआ। …। 

हे दिव्या सद्गुरु मुझे पाप कर्मो की तरफ जाने से रोक और तेरे सानिध्य से कभी भी वंचित न रह पाऊँ ।
सदा तेरे चरणो में
आपका दिवाकर
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 Attempted Translation of above

Getting human body itself is rare event according to Hindu scriptures, God's manifestation into human body is rarest, now if we that living God does the satsang it becomes rarest of rare, that place itself converts into purest form that whosoever enter into the territory they will also become purest of pure.

 Now if this jeeva founds such place this cannot be said as coincidence its Grace of God himself, this is calling of Sadguru, its blessing in form of selection of that jeeva to do his well being of self or welfare of self.
This choosen day of manifestation of well being and also,am blessed with such a sound of word from Sadguru which runs through me, Let me walk in the shade of that sound manifestation continuously such blessings i seek, that is Meaning for me of 1 st march walk on the path perpetually.

 The biggest threat for the path walker is his own mind, himself don't know to which place it can drag him nobody can tell, a poet describes his poem on a podium like in this way that, an ant ascend the hill, an ant ascend the hill , an ant ascend the hill, impatient listen shouts, now common let us know what happened next the poet says it has descended. And this is the way we live, we go on high some day, than we find so low another day, Mind is biggest conman, to tame is the toughest task, what master told you,  first let know masters words Rightly , until we apply them rightly, until we purify the mind , the jeeva keeps on destroyed by demonic mind repeatedly with his changing faces.

 There cant be biggest savior than sadguru (Messenger of God is visible, living God himself), He is the captain of ship, he is the ship, what we have to do, just we need to surrender, and sit quietly and travel along with him.
saying this bhajan of Guru Nanak


Note : attempted translation of meaning - mistakes can be found
I seek refugee in you, i seek refugee in you
all my doubts vanished when met you (see you)
am not able to describe my distress(for meeting) but you gave me your name to soothe me
than suffering just goes like that and happiness run through me,I just go singing with bliss 
you pulled me out by dragging the hand out , saved me from the Dark well of maya.
 this nanak who says that the  day when I met you all the bondage of suffering come end, one I become one with you as old lovers meet again.