Saturday, November 2, 2013

अपने अंदर आग पैदा करो.....

प्रिय मित्र   , दीपावली की शुभकामनाये ,


हमारे अन्दर आग कहाँ है? एक व्यंक्ति  था जिसने  आग बनाने की कला को खोजा, वह अपने औजार लेकर कबीलों में गया   , जब कभी भी बहुत ठण्ड पढती थी , उसने बताया की आग कैसे जलाई जाती है , लोग बहुत उत्सुक हो कर उसको देखतेथे , उनको वह दिखा था की आग के उपयोग क्या क्या है, वो लोग  खाना पका सकते थे, अपने तो ठण्ड से बचा सकते थे, वगेरा वगेरा।। वोह लोग बहुत आभारी थे उसके क्यों की उसने उनको आग बना सिखाया।

पर इससे पहले की वह अपने बात उससे कह पते वह कही गायब होचुका था , उसको सम्मान नहीं चाहिए था न  उन लोगो का धन्यवाद् वोह सिर्फ उनलोग का कुशल क्षेम चाहता था।वह दोसरे कबीला जा चुकता , वहां पर भी वह अपने खोज को दिखाया और लोगो को जगरूप किया , वहां  भी लोग काफी प्रभावित हुए और लोग के बीच लोग्प्रियता काफी बड गयी थी  पर कुछ लोग थे जिनको खटकने लगा ,  वहां  के पण्डित  पुजारियों  से ज्यादा मशहूर होगया था ,तो उन्लोगोने निर्णय किया की उसको ज़हर देकर मार डालें और उन्होंने वही किया भी।

पर उनको थोडा भय होगया की लोग उनके खिलाफ न होजाये  ,उन्होंने एक ऐसा निर्णय लिया जिससे साँप भी मरगया और लाठी भी नहीं टूटी , क्या आप सौच सकते है क्या किया होगा? उन्होंने उसकी एक मूर्ति रख दी  और वहां के मंदिर के मुख्य वेदी पर रख दिया .जिन चीजों से वह आग बनाता उसको वहां पर रखदिये  गए , और लोगो को कहदिया गया की उसको सम्मान दे और पूजा करें।

इस तरह लोगों का हूजूम हजारों साल तक कर्त्तव्य निष्ठा से करने लगे।श्रद्धा और भक्ति चलती रही पर हजारो साल तक कोई आग नहीं थी  कहाँ है आग? कहाँ है प्रेम ? कहाँ है मुक्ति?

येही है  आध्यात्म !!! यह दुखद पूर्ण है की हमने अपनी परख खो दी , नहीं क्या ?येही सब गुरु है पर हम महत्त्व किसको देते है ,किसको रटने लगे है एक फोटो के सामने रटी रटायी बातें  करनेमे अपना सारा वक्त बिताते है ,आग कहा है? अगर  आपकी पूजा आग उत्पन्न नहीं करपा रही है, अगर आपकी श्रद्धा प्यार उत्पन्न नहीं करपा  रही है , आपकी  पूजा पद्धति आपको सत्य का  अनुभव नहीं करा रही है , अगर आप ईश्वर   उन्मुख नहीं हॉपरहे है  , तो यह धर्म किस काम का , यह भक्ति किस काम की ,यह तो और  बांट देगा , और कट्टरपन रूढ़िवादिता  लायेगा और बैर लायेगा ,   ऐसा नहीं है की अधर्म के कारण  सब जगह दुःख है ,  दुखी इसलिए है क्यों की प्यार का आभाव है, चैतन्यता का अभाव है और कोई  रास्ता है ही नहीं ....है ही नहीं।।

अगर हम समझ पाए की जो अवरुद्ध हम प्यार के ,मुक्ति और आनंद  के बीच में लारहे  है उनको निकाल  दे,फ़ेंक दे  तो उसी क्षण जीवन में चैतन्यता का दीपक जल उठेगा , और अँधेरा दूर भगाएगा,  होजायेगा। और तभी हम सही मायने में दीपावली मनाएंगे .

गुरूजी कहते है( पैजे १७ मेरे किये है भरम सब दूर ) प्यारे भाइयों और बहिनो हमें कुछ भी  बनना नहीं है क्यों कि कुछ बनना ही भ्रम पैदा करता है। इसलिए जैसे के तैसे रहो। पदार्थ पद में से बनकर मूल को भूल जाता है अर्थात निज स्वरुप को व्यवस्था  यदि किन्ही कारण  वश पदार्थ स्वरुप में आ भी जाये तोह सदगुरु क़ी शरण में जाकर निज स्वरुप को जानो ,जो नित्य अवं पूर्ण है। कहने का आशय यह है कि तुम भी पूर्ण सर्वशातिमान जगत हो , अंतर केवल पहचान का हैं।  

"The sadguru is Nirguna(sat-chit-anand)he has indeed taken human form to elevate mankind and raise the world.But his real nature(nirguna) is not destroyed there by even a bit. His beingness(or reality) divine power , and wisdom, remain undiminished."(page 13, mere kiye bharam sab door)



दीपावली कि शुभकामनाएँ

तुम्हारा   मित्र  और शुभ चिन्तक 

1 comment:

  1. One of the way to get fire is this- Then he said unto them, Go your way, eat the fat, and drink the sweet, and send portions unto them for whom nothing is prepared: for this day is holy unto our Lord: neither be ye sorry; for the joy of the LORD is your strength....nehemiah 8-10

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